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Unnao's Slaughter House: ज़हर उगलती फैक्ट्रियां, मूक प्रशासन और बिके हुए नेता – कब जागेगा सिस्टम?


लेखक: निपुण भारत समाचार की ग्राउंड रिपोर्ट - स्ट्रिंगर: पुष्पेन्द्र यादव

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटा जिला उन्नाव आए दिन किसी न किसी वजह से खबरों में बना रहता है। लेकिन इस बार मामला और भी संगीन है। हम बात कर रहे हैं उस ज़मीनी हकीकत की, जिससे आंखें मूंदे प्रशासन, मौन बैठे नेता और चंद नोटों में बिके सिस्टम की सच्चाई सामने आती है। यह खबर उन फैक्ट्रियों की है, जिन्हें आप स्लॉटर हाउस कहते हैं, पर असल में ये 'जहर हाउस' बन चुके हैं – जहां से न केवल जानवरों का खून बहता है बल्कि पूरे जिले में ज़हर फैल रहा है – हवा में, पानी में और ज़मीन पर।

साँस लेना मुश्किल, पानी पीना ज़हर, ज़मीन पर रहना सज़ा – यही है उन्नाव की हकीकत!

जनपद उन्नाव के कई क्षेत्रों में स्लॉटर हाउस इस कदर फैल चुके हैं कि अब वहां रहना एक सज़ा बन चुका है। फैक्ट्रियों से निकलने वाला जहरीला धुंआ, गंदा पानी, खून, बदबूदार कचरा और रात के अंधेरे में लदी भैंसों की दर्दनाक चीखें – यही है आज का उन्नाव।

गांवों का पानी काला हो चुका है, हैंडपंप से बदबूदार पानी निकलता है जिसे पीने के बाद बच्चे बीमार पड़ रहे हैं। सांस की बीमारियों में इजाफा हो रहा है, जमीन पर मक्खियाँ भिनभिनाती हैं और हवा में सड़ांध। लेकिन प्रशासन? वो जैसे ‘भैंस के आगे बीन बजा रहा है’।

कौन हैं गुनहगार? – प्रशासन की चुप्पी और नेताओं की चांदी

जनता का खून चूसने में प्रशासन पीछे नहीं है। स्लॉटर हाउस मालिक हर महीने लाखों रुपये की रिश्वत बांटते हैं – थाना, तहसील, पंचायत, नगर पालिका, प्रदूषण विभाग, पशुपालन विभाग, खाद्य सुरक्षा, श्रम विभाग – सब की जेबें गरम हैं। नेता लोग तो ऊपर से "विकास" की बात करते हैं और नीचे से हर महीने मोटी रकम वसूलते हैं।

एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया – “महीने के आखिर में जैसे सैलरी मिलती है, वैसे ही फैक्ट्रियों से थानों तक ‘पैकेट’ पहुंचते हैं। हर थाना जानता है कि कब, कहां से, कितनी भैंसें आ रही हैं और कहां मारी जा रही हैं। विरोध करने पर सीधे जवाब मिलता है – ‘तुम वहां कर क्या रहे हो?’”

दही थाना संजीव कुशवाहा – किसके संरक्षण में चल रहा है गोरखधंधा?

एक पिकअप वाहन जिसमें 9 भैंसों को ठूंस-ठूंस कर लादा गया था, जब रोका गया तो ड्राइवर ने खुलेआम कहा – "थाना प्रभारी से बात कर लीजिए, सब सेट है।" उसका मैनेजर – जो रुस्तम फूड्स का बताया जा रहा है – फोन पर उसे झूठ बोलने की सलाह दे रहा था – "कह दो दो भैंसें हैं।"

विडंबना देखिए, जब पुलिस को सूचना दी गई तो थाना प्रभारी संजीव कुशवाहा का जवाब था – "तुम वहां क्या कर रहे हो?" यानि जनता को सच दिखाने पर ही शक! पुलिस जनता की नहीं, अब फैक्ट्री मालिकों की रखवाली करती है।

सिर्फ रुस्तम फूड्स ही नहीं, इन कंपनियों की भी गंदगी कम नहीं:

  1. RUSTAM FOODS

  2. AOV EXPORTS

  3. MASS AGRO FOODS

ये कंपनियां खुलेआम पशु क्रूरता के नियमों की धज्जियां उड़ा रही हैं। जिन नियमों के अनुसार:

  • 6 से ज्यादा मवेशी एक वाहन में नहीं लादे जा सकते,

  • प्रत्येक जानवर के पास कम से कम 2 वर्ग मीटर जगह होनी चाहिए,

  • मवेशियों को लाने-ले जाने के लिए प्रमाण पत्र, डॉक्यूमेंट, पशु चिकित्सक की पुष्टि जरूरी है,

  • हवा, पानी और पुआल की व्यवस्था अनिवार्य है,

वहां कुछ नहीं होता! खुले ट्रक, एक-दूसरे पर लदे हुए मवेशी, खून से सनी सड़कें और गूंगी सरकार!

समीर खान, इरफान, काले खां – ये नाम सप्लाई नेटवर्क के बिचौलिए हैं!

इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं, क्योंकि सबका ‘सेटिंग’ में हिस्सा है। सबसे ज्यादा चौंकाने वाला तथ्य यह है कि भैंसें चुराकर या अवैध रूप से लाई जा रही हैं। गांवों से रात में चोरी होती हैं और अगली सुबह स्लॉटर हाउस में उनका मांस विदेशों में एक्सपोर्ट के लिए पैक हो रहा होता है।

भारतीय पशु कल्याण बोर्ड और सरकारी नियमों की सरेआम धज्जियाँ

यहां पशु कल्याण बोर्ड के हर नियम की बखिया उधेड़ दी गई है:

  • रात में मवेशियों का परिवहन – बैन है, फिर भी हो रहा है।

  • डॉक्युमेंटेशन – झूठा या नदारद है।

  • वाहन में जगह, हवा-पानी की व्यवस्था – सपना है।

  • हर खेप पर डॉक्टर की मुहर – फर्जी या होती ही नहीं।

पशुओं को भूखा, प्यासा, दर्द में रखा जाता है और ट्रकों में ठूंसा जाता है – ये सब देखकर भी अगर शासन नहीं जागता, तो यह अपराध नहीं बल्कि षड्यंत्र है।

कहां हैं जिम्मेदार विभाग? सब मिले हुए हैं!

सरकार ने तो कागज़ पर बड़े-बड़े विभाग बना दिए:

  • स्वास्थ्य विभाग

  • पशुपालन विभाग

  • श्रम विभाग

  • खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण

  • राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

  • राज्य पशु कल्याण बोर्ड

  • पुलिस प्रशासन

लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि हर विभाग की जेब में हर महीने कुछ ‘खास नोट’ जाते हैं और जवाब में मिलता है – ‘सब ठीक है’।

क्यों चुप हैं मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री?

क्या योगी आदित्यनाथ जी को उन्नाव की ये सच्चाई नहीं पता? क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को यह खबर नहीं पहुंची कि उत्तर प्रदेश का यह जिला ‘गंध का गढ़’ बन चुका है? जब बात हिंदू धर्म, गौ माता और संस्कृति की करते हैं, तब इन स्लॉटर हाउस के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं होती?

क्या सिर्फ चुनाव में धार्मिक मुद्दे उठाना ही धर्म है, बाकी समय ‘कमाई’ धर्म बन जाती है?

विकास की आड़ में विनाश – उन्नाव की तस्वीर

जहां एक तरफ सरकार 'विकास' का नारा देती है, वहीं दूसरी ओर उन्नाव जैसे जिले में लोग अपनी जान की भीख मांग रहे हैं। एक समय था जब उन्नाव कृषि, परंपरा और संस्कृति का केंद्र हुआ करता था – आज वह प्रदूषण, करप्शन और अपराध का मॉडल बन गया है।

वीडियो सबूत भी मौजूद हैं – लेकिन दिखाए किसे?

हमारे पास दर्जनों वीडियो हैं, जहां:

  • ट्रकों में लदी भैंसे तड़प रही हैं।

  • स्लॉटर हाउस से बहता खून और गंदा पानी खेतों में जा रहा है।

  • पुलिसकर्मी मौके पर मौजूद होकर भी ‘कुछ नहीं देख रहे’।

पर क्या इन वीडियो से कुछ बदलेगा? जब तक जनता नहीं बोलेगी, तब तक नेता और अफसर ‘कान में रुई’ डालकर नोट गिनते रहेंगे।


अब वक्त है सवाल उठाने का

अब सवाल जनता से है – कब तक आप सांस घुटते देखेंगे और चुप रहेंगे? कब तक नेताओं की गाड़ियों में लगे विधानसभा पास देखकर डरते रहेंगे? कब तक एक मुट्ठी भर लोग पूरे जिले की सेहत, धर्म और कानून को बेचते रहेंगे?

यह सिर्फ उन्नाव की लड़ाई नहीं, यह हर उस भारतीय की लड़ाई है जो अपने देश, धर्म, पशु और प्रकृति की रक्षा करना चाहता है।

इसलिए मांग की जाती है कि:

  1. सभी स्लॉटर हाउस की तत्काल जांच हो, लाइसेंस की समीक्षा की जाए।

  2. प्रशासनिक अधिकारियों और थानों के भ्रष्ट कर्मचारियों को निलंबित किया जाए।

  3. राज्य सरकार और केंद्र सरकार उच्चस्तरीय जांच बैठाए।

  4. पशु क्रूरता अधिनियम के तहत सख्त कार्यवाही हो।

  5. जनता को सुरक्षित हवा, पानी और भूमि की गारंटी दी जाए।


“अगर आज आपने आवाज़ नहीं उठाई, तो कल आपके घर का पानी, आपके बच्चों की सांस और आपकी धरती – सब जहर बन चुके होंगे।”